शनिवार, 28 अगस्त 2021

 चमेली जान :पहली किन्नर कथा

भारतेंदु मिश्र


हिन्दी साहित्य में यह काल खंड आलोचना को प्रश्नाकित करने का है | हमारे बड़े  आलोचकों ने पिछले कई दशकों के साहित्य को या तो अनालोचित ही छोड़ दिया या फिर एक ख़ास विचार धारा की पैरवी करते हुए साहित्य को एकमार्गी बनाने में कोई कोर कसर बाकी नही रखी | मार्क्सवादी  आलोचना  की यह सीमा भी रही कि उसमें कुछ ख़ास पैमाने बनाए गए |कविता  हो या कहानी अथवा गद्य की अनेक विधाएं सभी समकालीन रचनाकारों की  इस प्रकार की चिंता समय समय पर उठती रहती है |इसीका परिणाम हुआ कि अब आलोचना का स्थान विमर्श ने ले लिया है | राजेन्द्र यादव ने हंस के संपादकीयों में प्राध्यापकीय आलोचना को इसी लिए नकार दिया था |साहित्य में उभरे कुछ विमर्श बहुत काम के हैं | उदाहरण के लिए दलित विमर्श,स्त्री विमर्श,लोकभाषाओं,जनभाषाओं  के साहित्य का विमर्श , किन्नर विमर्श  ,विकलांगता विमर्श आदि | विमर्श में आलोचना नहीं होती बल्कि मुख्यधारा के साहित्य में ऐसे साहित्य को जोड़ने की वकालत होती है | रचनाकार के जीवन संघर्ष और  सामाजिक परिवेश को ध्यान  में रखते हुए  उसकी रचनाशीलता को समझने और समझाने के लिए यह विमर्श  आवश्यक भी है | इस विमर्श  ने हमें अनेक उल्लेखनीय साहित्यकार दिए हैं | समकालीन सृजन को व्यापक मनुष्यता के  पक्ष से विश्लेषित करने की दृष्टि से यह  सचमुच महत्त्व का कार्य  है | इन विमर्शों की दृष्टि से जो महत्त्व के  कार्य किये गए हैं उन्हें साहित्य की मुख्य चेतना में शामिल किया जाना आवश्यक भी है  |

पिछले कुछ दशकों में किन्नर विमर्श की बहुत चर्चा हुई है |ट्रांसजेंडर को लेकर अनेक कवितायें कहानियां उपन्यास और जीवनीपरक पुस्तकें अब हमारे सामने आ चुकी हैं |

 यहाँ मैं बात करना चाहता हूँ हिन्दी में लिखी पहली किन्नर कथा की जो कि अमृतलाल नागर जी ने अपने साप्ताहिक अखबार चकल्लस (वर्ष -1 अंक -19  जून 1939 में )प्रकाशित की थी |इसके लेखक आधुनिक अवधी के प्रगतिशील कवि और श्रेष्ठ कथाकार बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी थे |उनकी इस कहानी का नाम चमेली जान है | आकार और शिल्प की दृष्टि से यह कहानी संस्मरणात्मक  रेखाचित्र जैसी दिखती है |इसीलिए नागर जी ने इसे स्केच कहा था | रामविलास शर्मा जी ने जब पढ़ीस ग्रंथावली का संपादन किया तो उसमें भी इसे स्केच ही कहा | मेरी दृष्टि में यह हिन्दी की पहली पूर्ण किन्नर कथा कही जा सकती है | विधा की दृष्टि से इसे स्केच , संस्मरण, रेखाचित्र  या कहानी  कुछ भी कहा जा सकता है |कथा नायक नंदराम पढ़ीस  जी के गाँव के मित्र थे | बचपन में पढ़ीस  जी उनके साथ खेलते मिलते बतियाते थे |नंदराम अपने माता पिता के अकेले पुत्र थे | उनके पिता  जी  गाँव के मुखिया थे |लेकिन जैसे जैसे नंदराम बड़े हुए किशोरावस्था आते ही  उनमें लड़कियों जैसी शर्म संकोच के लक्ष प्रकट होने लगे |उनके हमउम्र साथी लड़के  उन्हें खेत खलिहान  में  छेड़ने  लगे थे |

हम कल्पना कर सकते हैं कि आज से लगभग एक सदी पहले का पिछड़ा ग्रामीण समाज कैसा रहा होगा ? मर्दवादी चेतना और उस पर सवर्ण कनवजिया  ब्राह्मण परिवार का एकलौता लड़का नंदराम किस मनोदशा से गुजरता होगा ? कोढ़ में खाज  यह कि उसके पिता  गाँव के मुखिया थे | उनके परिवार के  लिए उस समाज में नंदराम को हिजड़ा या नपुंसक रूप में स्वीकार करना  मानो जीवन मरण  का प्रश्न था |उस समय के उसके हमउम्र अन्य किशोरों की मानसिकता कैसी रही होगी यह भी चिंतन का विषय है | कमोबेश  आज भी हमारे तथाकथित भद्रलोक के समाज में सभ्य  समझे जाने वाले शहरी परिवारों में भी किन्नरों के प्रति  ऐसी स्वीकृति की सहमति नही बन पायी है |  नंदराम का मनोविश्लेष्ण करते हुए उनके  स्त्रियोचित आचरण को लेकर पढ़ीस  जी लिखते हैं-

नंदराम बड़े शौक़ीन थे |लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उनका झुकाव अजब तरह की बातों की ओर होने लगा था |मैनचेस्टर की मखमली पाट वाली मलमली चुनी धोती पहन आधी सर पर डाल  लेते |किशोर से अधिक उन्हें किशोरी की तरह चलना  पसंद आने लगा था |यद्यपि बाप की आँख बचाकर ही शुरू शुरू में ऐसा हो पाता  था  फिर भी वह अपनी सुरमा लगी आँखों ,पान की लाली और लम्बी बाल की लट का गाल चूम लेना, एक छोटे आईने में ,जो हर समय उनके सलूके की जेब में रहता था ,दिन में कईबार देख लिया करते थे | ( चमेली जान, भारतीय साहित्य के निर्माता बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस  -पृष्ठ 109 )

नंदराम पढ़ीस  जी से कोई छह महीने बड़े थे |पढ़ीस जी से उनकी मित्रता थी |वो अपने दिल की तमाम बातें उनसे साझा भी करते थे | नंदराम  ब्याह नहीं करना चाहते थे | जब नंदराम का ब्याह करने वाले उन्हें देखने आये तो पढ़ीस जी ने उन लोगों को नंदराम की मनोदशा के बारे में बता दिया |यह बात नंदराम के परिवार के लोगों को बहुत बुरी लगी और  पढ़ीस जी के पिता  को बुलाकर मुखिया जी ने बहुत डांटा फटकारा | एक दिन तो नंदराम की माता  ने पढ़ीस  जी की माता को दलित जाति  की महिलाओं से खूब गालियाँ भी दिलवायीं | पढ़ीस जी पर भी परिवार के बुजुर्गों का बहुत  दबाव पड़ा |एक दिन दादी जी ने पढीस जी को समझाया- देखो लाल ! शादी में भांजी मारने से बड़ा पाप लगता है | आखिर हम भी तो घी पूत रखाए हैं| ( वही, पृष्ठ-110) पढीस जी अपने दोस्त को शादी करने से बचाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने ब्याह कराने आये लोगों से नंदराम की सच्चाई बतायी थी  | नंदराम का कहना था- मेरा ब्याह करने से क्या फ़ायदा ? मेरे भाग्य में न जाने क्या बदा  है ?( वही,पृष्ठ-110)

गाँव की उस रूढ़िवादी सोच से लड़ना तब शायद इतना आसान नहीं था |परन्तु संवेदनशील  लेखक पढ़ीस जी ने अपने मित्र के प्रति अपने  दायित्व को निभाने की पूरी कोशिश अवश्य की | इस घटना के बाद पढ़ीस जी लखनऊ चले आये | नंदराम तालाब पर नहाती स्त्रियों को उनके कपड़े दे आते महिलाओं की धोती धो डालते |गाँव की  स्त्रियाँ भी नंदराम को अपने जैसा ही मानने लगी थीं | लेखक ने नंदराम के बहाने  किन्नर की मनोदशा का जैसा शब्द चित्र खींचा है वह उस समय के हिसाब से  अत्यंत स्वाभाविक और नवीन  लगता है | परिवार के लोगों ने आखिरकार नंदराम की शादी करा ही दी | नंदराम ने अब घर से  भागकर भीष्म कर्म करा लिया था  और लखनऊ आकर पाटानाला के पास कहीं  हीजड़ों की टोली में शामिल हो गए थे |इसके अलावा उनके सामने जीने के लिए आजादी का  कोई दूसरा  रास्ता न बचा था | पढ़ीस जी जब गाँव जाते तो नंदराम की पत्नी माने अपनी भावज से मिलकर आते | इस शादी से नंदराम और उनकी पत्नी दोनों का जीवन बर्बाद हो गया था | दोनों को समझने वाला कोई न था इसीलिए नंदराम घर से भाग गए और उनकी पत्नी अभिशप्त जीवन जीने के लिए वही पड़ी  रही | नंदराम ने अपनी पत्नी को  दूसरा विवाह कर  लेने के लिए भी कहा था लेकिन उसने स्वीकार न किया | उस जमाने में स्त्रियों को ऐसे अधिकार भी न थे | किन्नर अधिकारों की बात तो भूल ही जाइए |

कई वर्षों के बाद अचानक लखनऊ में पढ़ीस जी एकबार नंदराम को देखकर पहचान लेते हैं तो उनसे बात करते हैं | कहानी में भाषा और परिवेश का अद्भुत यथार्थवादी  सृजन लेखक ने किया है | मंगलमुखी नंदराम  ने गा बजाकर सबको दुआएं देने के लिए  अब अपनी टोली बना ली थी और अपना नाम चमेली जान रख लिया था |मानो वह  सभी जाति  धरम के बंधन से मुक्त हो गए हों | लखनऊ में अचानक पढ़ीस जी को देखकर नंदराम अपनी टोली के साथियों को विदा कर अकेले में बात करते हैं | नंदराम अपनी पत्नी को अपनी सहेली की तरह बहुत चाहते हैं | लेकिन उसकी स्थिति को सुधारने के लिए नंदराम पढ़ीस  जी से कहते हैं -  मेरी औरत से कह देना वह यहाँ मेरे पास चली आये तो आर्यसमाजियों के यहाँ मैं उसका दूसरा ब्याह करा दूंगी | ऐ हाँ,कन्यादान भी कर दूंगी |   पढ़ीस जी को यह संदेश देकर नंदराम उर्फ़ चमेली जान चली गयी | नंदराम ने अपने समाज से भागकर अपनी तरह की जिन्दगी को चुन लिया था किन्तु वह गाँव में विवश पड़ी  अपनी ब्याहता  पत्नी के जीवन और उसकी बेहतरी के  बारे में सकारात्मक सोच रखता है |एक सदी पहले के  लेखक पढ़ीस  जी के ये  विचार आज भी नए और ताजगी से भरे लगते  हैं |

यहाँ ज्ञातव्य है कि भोले भाले नंदराम को  चमेली जान बनने पर अगर किसी ने विवश किया था  तो वह उनका रूढ़िवादी पुरुष सत्ता वाला समाज ही है | पढ़ीस जी जिस संवेदनशीलता से नंदराम और चमेली जान के शब्द चित्र बनाते हैं उतनी ही तन्मयता से  नंदराम  की पत्नी के निर्विकार भाव  का शब्द चित्र प्रस्तुत करते हैं| आकार की दृष्टि से कहानी बहुत बड़ी नही है किन्तु संवाद इतने सधे पठनीय  और मर्मस्पर्शी हैं  कि सीधे हृदय में स्थान बना लेते हैं | इस कहानी का मंचन किया जाय तो बहुत खूबसूरत रंगमंच बन सकता है | मुझे लगता है कि यह कहानी ही हिन्दी की पहली किन्नर कथा है |

लामजहब शीर्षक से पढ़ीस जी का कहानी संग्रह वर्ष 1939 में पटना से प्रकाशित हुआ था | वह प्रेमचन्द युग के समर्थ कथाकार थे |  शब्दचित्र  का सृजन करने और मनोवैज्ञानिक परिस्थितियों  का वर्णन  करने में पढीस जी को महारत हासिल थी | कथाकार पढ़ीस जी के बारे में डॉ. रामविलास शर्मा  जी लिखते हैं-

अमृतलाल नागर ने कहा था वह तस्बीर निगारी में प्रेमचंद से आगे थे ,यह बात सही है |अमृतराय ने इनके मरने के बाद हंस में एक लेख में लिखा था -कुछ बातों में वह  प्रेमचन्द से बड़े थे यह बात भी सही है |इनके गद्य में जो कसाव है और गहरी करुणा  है यह अन्यत्र दुर्लभ है |हिन्दी का यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि उनका जीवन अकाल ही समाप्त हो गया |(-पृष्ठ -12 ,पढीस ग्रंथावली )

साहित्य अकादमी के लिए पढ़ीस जी पर विनिबंध लिखते समय  इस मार्मिक कहानी को लेकर बार बार मेरे मन में यह विचार आता रहा कि शायद इस कहानी को हिन्दी की पहली किन्नर कथा कहा जाना चाहिए | आशा है कि किन्नर विमर्श से जुड़े साहित्यकार चिंतक शोधार्थी  मेरे इस प्रस्ताव पर सहानुभूति पूर्वक विचार करेंगे |

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