tag:blogger.com,1999:blog-2429316389936753482.post315408427273011586..comments2023-09-01T21:06:25.396-07:00Comments on नाट्य प्रसंग: भारतेंदु मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/07653905909235341963noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-2429316389936753482.post-36623887347758409762011-02-09T22:14:18.927-08:002011-02-09T22:14:18.927-08:00भटकता हुआ आया था ,किन्तु भटका हुआ नहीं रहा|नाट्य-स...भटकता हुआ आया था ,किन्तु भटका हुआ नहीं रहा|नाट्य-सम्पदा मिली-वह भी अष्टावक्र केंद्रित | <br />सुखी अनुभव कर रहा हूँ , और अगली कड़ियों की प्रतीक्षा भी --उत्सुकता सहित |praveen pandithttps://www.blogger.com/profile/04969273537472062512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2429316389936753482.post-60170876511181388322011-01-25T09:48:06.342-08:002011-01-25T09:48:06.342-08:00आचार्य सुयश वैदिक कर्मकाण्ड का अनुसरण करते किंतु स...आचार्य सुयश वैदिक कर्मकाण्ड का अनुसरण करते किंतु सावित्री को वैदिक कर्मकाण्ड पर विश्वास नहीं था--वस्तुत: इस द्वैत से ही अष्टावक्र का जन्म हुआ, ऐसा मेरा मानना है। मेरे अध्ययन के अनुसार--तत्कालीन समाज में योग के आठ अंगों की विक्षिप्त और रूढ़ हो चुकी परम्परा के विरोधस्वरूप ही 'अष्टावक्र' की अवधारणा ने जन्म लिया। आपने विषय को स्वाभाविक संवादो से आगे बढ़ाया है। जिज्ञासा बनती है कि आगामी कड़ी में क्या होने वाला है!बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2429316389936753482.post-32436148275766940012011-01-25T05:54:57.779-08:002011-01-25T05:54:57.779-08:00बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर नई पोस्ट देखकर अच्छा ...बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर नई पोस्ट देखकर अच्छा लगा। 'अष्ठवक्र' में एक कौतुहल छिपा लगा, आगे क्या होगा? वाला… नाटक का यह अंश बांधता है…सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2429316389936753482.post-69360022068173177052011-01-25T05:54:16.318-08:002011-01-25T05:54:16.318-08:00श्रेष्ठ नाट्य प्रसंग..! ...!मैंने ''अष्टाव...श्रेष्ठ नाट्य प्रसंग..! ...!मैंने ''अष्टावक्र गीता ''(हिंदी अनुवाद -अनुवादक श्री नन्द लाल दशोरा )पढ़ा है!...अद्वितीय ....!वस्तुतः,अष्टावक्र का सारा उपदेश बोध का है !ज्ञान प्राप्ति के लिए मात्र उपदेश इतना ही था .की ""आत्म ज्ञान के लिए कुछ करना नहीं है,क्यूँ की क्रिया केवल बंधन है !इनके साथ अपेक्षाएं और फल की आकांक्षाएं जुडी रहती हैं !जीवन समस्या नहीं है,किन्तु मनुष्य के गलत द्रष्टि कोण ने ही उसे समस्या बना दिया है!""...बहुत प्रासंगिक और सरल व्याख्या! ये भी कहा जाता है की विवेकानंद अष्टावक्र गीता पढ़ते पढ़ते ही ध्यानस्थ हो गए थे ,व् उनके जीवन में क्रांति घट गई !..धन्यवाद भारतेंदु जी इस सुन्दर प्रसंग के लिए !वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.com