सोमवार, 8 जून 2009

शोक के शब्द

परदा गिरा कर चल दिये



नहीं रहे छ्त्तीसगढ़ी रंगशैली के उन्नायक, महान रंगकर्मी हबीब तनवीर साहब के दिवंगत होने ख़बर तमाम रंगकर्मियों-लेख़कों को शोकाकुल कर गयी।रायपुर छ्त्तीसगढ़ में 1 सितंबर1923 को जनमे हबीब तनवीर को अपनी मिट्टी इतनी प्रिय थी कि उन्होंने अपने रंगकर्म के द्वारा छ्त्तीसगढ़ी शैली में अपनी अलग पहचान विकसित की।वे सामान्य परिवार में जनमें और सारा जीवन सामान्य आदमी के ख़्वाबों को नयी रंगभाषा और नया रंगमंच देने के लिए प्रयत्नशील रहे।
सच्चे अर्थों में प्रगतिशील चेतना को लेकर आगे बढ़ने वाले तनवीर साहब नए रंगजगत के सर्जक थे।उनका रंगसंसार अनूठा है। आगरा बाजार उनका प्रसिद्ध नाटक है जिससे रंगमंच पर उनकी नयी पहचान बनी। इसके बाद शूद्र्क के मृच्छकटिकम पर आधारित नाटक मिट्टी की गाड़ी का छ्त्तीसगढ़ी शैली में प्रयोग बहुत चर्चित रहा।मोर नांव दामाद, चरन दास चोर,इन्दर लोकसभा ,शाजापुर की शांतिबाई,नंदराजा मस्त है आदि उनके छ्त्तीसगढ़ी भाषा के नाट्य प्रयोग हैं। लोकजीवन की तमाम अनुगूंजें हबीब साहब की कल्पना में साकार रूप लेती दिख़ायी देती हैं।
शूद्र्क विशाख़द्त्त,भवभूति,शेक्सपीयर ,रवीन्द्र्नाथ ठाकुर,ब्रेख़्त,प्रेमचंद,गोर्की, शंकरशेष जैसे महान लेख़कों के नाटकों का ही मंचन नही किया अपितु उन्होंने अपने समकालीन नाट्यकरों के नाटकों पर भी काम किया। विजयदान देथा,असगर वजाहत, सफ़दर हाशमी जैसे लेख़कों के कांसेप्ट पर भी तनवीर साहब ने काम किया। अभी 21 मार्च 09 को भारत भवन- भोपाल में आयोजित संस्कृत नाट्योत्सव में अंतिम बार उनसे मुलाकात करने का मौका मिला।तब भी वे अस्वस्थ थे।आयोजक राधावल्लभ त्रिपाठी सहित सभी ने उनसे आग्रह किया कि वे बैठकर ही अपने विचार व्यक्त करें। पर उनका उत्साही रगकर्मी उन्हे ख़ड़े होकर आपनी बात कहने के लिए विवश कर रह था। वे बोले- “अभी मैं ख़ड़ा हो सकता हूँ ।“ इसके बाद वे कांपते हुए कदमों से डायस की ओर बढ़ गये।
अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित पद्मभूषण हबीब तनवीर साहब अपने विशिष्ट रंगकर्म पर परदा गिरा कर आज चले गये। पता नही उन जैसा कोई विलक्षण रंगनिदेशक दुबारा कब इस दुनिया में कदम रख़ेगा।





5 टिप्‍पणियां:

  1. याद आयेंगे। दिल्ली के मुनिरका में देखा था। पाइप पीते हुए। साधारण से मकान में रहते हुए। पत्रकारिता के पहले चार या पांच इंटरव्यू में से वे भी थे। खनकती आवाज़। कमिटमेंट। प्रयोग। विनम्रता। इन सब गुणों को साक्षात देखा था।

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  2. बेहतर समय नये आगा़ज़ के लिए॥
    काम को आगे बढाना ही सच्ची याद है।

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  3. वल्लाह..हबीब जी का काम..उनका समर्पण..उनके सरोकार...

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